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Admission Rules

संस्थान की विशेषताएं

1. भारतीय संस्कृति पर आधारित सर्वांगीण विकास मूलक आधुनिक शिक्षा व्यवस्था।
2. प्रखर देशभक्ति के संस्कार पूर्ण उत्तम चरित्र निर्माण पर बल ।
3. नैतिक शिक्षा के विकास पर बल।
4. अभिरूचियों का सम्यक विकास।
6. वाचनालय की व्यवस्था ।
5. स्वच्छ एवं हवादार व्याख्यान कक्ष।
7. वातानुकूलित कक्ष में कम्प्यूटर शिक्षा की व्यवस्था ।
8. उच्च उपाधि प्राप्त एवं राष्ट्रीय पात्रता (नेट) उत्तीर्ण शिक्षकों द्वारा शिक्षण कार्य ।
9. महाविद्यालयी शिक्षण कार्यकाल में बाहरी आगन्तुकों के प्रवेश पर पूर्णतया प्रतिबन्ध ।
10. शैक्षिक कैलेण्डर का प्रकाशन।
11. वर्ष में कम से कम 180 दिन अध्यापन
12. संस्कार सम्पन्न संस्कृति के प्रति सचेष्ट राष्ट्रवादी विचारों से ओत-प्रोत छात्र/छात्राओं के निर्माण हेतु विशेष कार्यक्रम एवं व्याख्यान मालाओं का आयोजन।
13. शिक्षणेत्तर क्रिया-कलापों की व्यवस्था।
14. सामाजिक दायित्व की जानकारी एवं निर्वहन के प्रशिक्षण हेतु एन.एस.एस. कार्यक्रम संचालित
15. छात्र/छात्राओं के लिए देश दर्शन/पर्यटन की व्यवस्था।

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भारतीय शिक्षा का अर्थ संस्कार होता है। शिक्षा उस व्यवहार का नाम है जो बालक के जीवन एवं आचरण में परिवर्तन लाती है। सर्वागीण शिक्षा छात्र छात्राओं के शारीरिक, मानसिक बौद्धिक नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास का आयोजन करती है। किन्तु विडम्बना यह है कि शिक्षा के नाम पर हमारे देश में कॉन्वेन्ट विद्यालयों के माध्यम से, जो पाश्चात्य संस्कृति प्रवेश कर गयी है. वह धीरे-धीरे हमारे भारतीय संस्कारों को लुप्त करती जा रही है। लार्ड मैकाले की यह शिक्षा पद्धति शिशु को बालपन से ही इस तरह प्रभावित करती है कि युवा होने तक अपनी संस्कृति, राष्ट्रीयता, समाजिकता मानवीयता, नैतिक चरित्र जैसे बिन्दुओं पर ध्यान न देकर पूर्ण रूप से दिग्नामित हो चुका होता है। किसी भी आदर्श राष्ट्र का निर्माण यहां के रहने वाले संस्कारित नागरिकों से होता है। आज के छात्र / छात्रा ही कल के भावी कर्णधार होंगे जिसे शिक्षा के माध्यम से ही संस्कारित करके आदर्श राष्ट्र के निर्माण में लगाया जा सकता है। किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह चिन्तन का विषय है कि यदि भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत संस्कृति शिक्षा का माध्यम ही उचित नहीं होगा तो आदर्श राष्ट्र की कल्पना कैसे की जा सकती है आखिर भारत की विशेषता क्या रही है यह विशेषता है उस संस्कारमयी वात्सल्य से परिपूर्ण भारतीय संस्कृति का अवगाहन करने वाली ममता के आधार पर समतामूलक शिक्षा पद्धति किन्तु यह दुर्भाग्य है कि धीरे-धीरे अंग्रेजी माध्यम की यह नयी पीढ़ी उन्हें समाप्त कर रही है। यही कारण है कि हमारे देश के युवा वैज्ञानिक, चिकित्सक, अन्वेषक आदि विदेशों की तरफ आकर्षित होकर तेजी से पलायन कर रहे हैं। यदि हमारी प्रतिभा चली गयी तो प्रतिभाहीन भारत जमीन का मात्र एक टुकड़ा रह जाएगा।

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सरकारित शिक्षा के माध्यम से ही राष्ट्र के उत्थान में सहयोग देना होगा, आत्ममंथन करना होगा तथा आत्मनुशासन को जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लागू करना है जिसके द्वारा भारत स्वस्थ व मानसिक रूप से स्वतंत्र चेतना के धरातल पर जीवन विकास की वास्तविक अनुभूति दे सके तथा संस्कारित शिक्षा के माध्यम से छात्र छात्राओं का चारित्रिक प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक विकास करें और प्रत्येक छात्र छात्रा को इस स्वर्णिम युग का अग्रदूत बनाये ताकि आने वाले दिनों में भारत का गौरव सूर्य विश्व में प्रतीक बने और भारत एक बार फिर विश्वगुरू कहलाये। धन्यवाद ! महेन्द्र यादव संस्थापक / प्रबन्धक